सोमवार, 4 जनवरी 2010

क्या तुम किसी हिन्दुस्तानी औरत को जानते हो?


क्या तुम किसी हिन्दुस्तानी औरत को जानते हो?

उसमें बरसात के बाद की
सौधीं मिट्टी की महक है
आश्व्स्त हो जाओगे
उसकी सासों की लय से
पाओगे उसकी बाहों के दायरे में एक सुकून एक सुरक्षा



वह उस् पेड़ की तरह है, जिसके
आस पास जमीन सूखी पथरीली
पेड़ फिर भी हरा-भरा
जड़ें जरूर गहरी है



पास गिरे किसी पत्ते को उठाकर देखो
उसकी धमनियों में तुम
खुद को खून की तरह बहता पाओगे



वह हवा की तरह है
कभी धीमी कभी तेज
वक्त से बेपरवाह
यह हवा तुम्हें
उछाल भी सकती है
ठीक उस तरफ
जिधर तुम्हें जाना है,


किसी धधकती भट्ठी के पास बैठकर
आँच से आते
पसीने को यातना को
महसूस करो
उसे देखो
हमेशा वहीं बैठा पाओगे

लगता है पहाड़ हो गयी हो,


वह असमर्थताओं से नहीं
संभावनाओं से घिरी है
वह पहाड़ में दरवाजे बना सकती है
और हर दरवाजे से
पूरा का पूरा पहाड़ गुजार सकती है



 क्या तुम सचमुच उसे पहचानते हो?
क्या तुम किसी हिन्दुस्तानी औरत को जानते हो?

- बालकृष्ण अय्यर

13 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

kavita sunder ban padii haen

Kusum Thakur ने कहा…

अच्छी रचना है , बधाई !!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

बहुत ही प्यारा सवाल है।
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मनोज कुमार ने कहा…

इससे अच्छी परिभाषा नहीं हो सकती। वाह .. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति।

Unknown ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

वह असमर्थताओं से नहीं
संभावनाओं से घिरी है
वह पहाड़ में दरवाजे बना सकती है
और हर दरवाजे से
पूरा का पूरा पहाड़ गुजार सकती है,

अय्यर भैया-आपकी कविताओं मे अनंत गहराई है। सतही तौर पर समझना कठिन है। इसमे डुबना पड़ता है। आभार

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बहुत सुंदर कविता है। एक आदर्श सामने रखा है आप ने।

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी रचना।

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत ही सुंदर कविता है , एक एक पंक्तियां अर्थ रखती हैं और इसके बहुत मायने हैं

अनिल कान्त ने कहा…

arthpoorn kavita hai ye

अपूर्व ने कहा…

आँच से आते
पसीने को यातना को
महसूस करो
उसे देखो
हमेशा वहीं बैठा पाओगे

आपकी यह कविता अपने स्वाभाविक अर्थों से परे और उससे अगले स्तर पर जाती है..सारे बिम्ब एक साथ मिल कर उस शीर्षक को सघन बनाते हैं..बार-बार पढ़े जाने की मांग करती है यह कविता

बधाई

शरद कोकास ने कहा…

तुम्हारा कवि अब जागने लगा है

बेनामी ने कहा…

सच में बहुत तार्किक और सटीक कविता। बहुत खूब