मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

कविता टुकड़ों में - 3

कविता टुकड़ों में 3

1. अवसाद से भीगी आत्मा का बोझ लिये
   अंधी आस्था का सुर
   गूंगे स्वरों के सहारे
   काठ की घंटियाँ बजाने की कोशिश में है,
   कुछ और नहीं
   हमारी कमजोर सोच के कंधो पर सवार
   ये हमारा बौना अहं है.


2. इंसानियत का एक बड़ा सा झंडा
  यहाँ लहराता है, और
  मर कर सड़े इतिहास का कोई पन्ना
  रोज फड़फड़ाता है
  बार बार इसकी सड़ांध से
  दूर भागता हूं, और
  किसी अदृश्य से टकराकर
  खुद को
  इसके किन्हीं पन्नों के बीच पाता हुं.

3. किसी बर्फीले पहाड़ पर उग आयी धूप का
  कंधा पकड़कर
  खड़ा होता भविष्य
  अपने ही भार से लड़खड़ाता है,
  लड़खड़ाना हमेशा गिरना नहीं
  संभलना भी होता है.



11 टिप्‍पणियां:

36solutions ने कहा…

बहुत ही गहरे अर्थो को समाहित करती, टुकड़ों के शव्द शव्द मे सम्पुर्ण मानवीय दर्शन और विचारो को मथती हुई कविता.

धन्यवाद भईया.

ρяєєтii ने कहा…

bahut khubsurti se in tukdo ko shabdo main dhaala hai....

अपूर्व ने कहा…

लड़खड़ाना हमेशा गिरना नहीं
संभलना भी होता है.

क्या बात कही है..सीधी भेजे मे घुस गयी..बिना इंट्री-पास के..

अर्कजेश ने कहा…

लड़खड़ाना हमेशा गिरना नहीं
संभलना भी होता है

याद रहने वाली पंक्तियॉं । अच्‍छी लगी कविता ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

जैसे दु्र से आती आवाज गुंजती है और कई बख्तरबंद की तहों को भेद कर धंस जाती है, उसी तरह कविता टुकड़ों बहुत कुछ जोड़ देती है।-आभार

Udan Tashtari ने कहा…

लड़खड़ाना हमेशा गिरना नहीं
संभलना भी होता है.


-जबरदस्त..बहुत उम्दा!!


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

हास्यफुहार ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।
आने वाला साल मंगलमय हो।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

किसी बर्फीले पहाड़ पर उग आयी धूप का
कंधा पकड़कर
खड़ा होता भविष्य
अपने ही भार से लड़खड़ाता है,

बहुत सुंदर पंक्तियाँ...


आपको नव वर्ष कि शुभकामनाएं...

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

कई विचार करने योग्य बातें आपकी कविताओं में निहित है..बढ़िया भाव...बधाई..
नववर्ष के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ..

@ngel ~ ने कहा…

bahut hi sunder :)
kam shabdon mein aap itni gehrayi kheench laaye... !!!
meri rachnao ki prashansa ke liye dhanyavaad..
- ojasi

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी कवितायें हैं भाई .. सॉरी देर से पढ रहा हूँ ।