सोमवार, 25 जनवरी 2010

लड़ाई, दलीलें, भावनायें और विचार

लड़ाई, दलीलें, भावनायें और विचार
समंदर के किनारे जाकर
सोचता हूं
ये अंतहीन किनारा ठीक मेरी लड़ाई की तरह है,  
खीझ भरी और अंतहीन लड़ाई.

तपिश से सूखते पेड़ की फैलती सिमटती परछाई   
खुद के लिये बेकार
ठीक मेरी दलीलों की तरह
लंबी, छोटी, अस्थिर
लगातार अपना असर खोती दलीलें.

उभरी हड्डियों वाली छाती के खांसने कराहने
की ही तरह होती हैं शायद
भावनायें
एक द्वंद भरी त्रासदी.

और,

विचार बस घास जैसे
मौसम के साथ सूखते हरे होते
मरते नहीं
शायद जड़ें बहुत गहरी हैं.
मिट्टी फाड़ बाहर निकल आयेंगे विचार
लड़ाई, दलीलों और भावनाओं के बीच
विचार
घास जैसे.
-बालकृष्ण अय्यर

8 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

hey i liked especially the last para about thoughts.truly well said and expressed.good work.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत सुंदर.......

बेनामी ने कहा…

विचार बस घास जैसे
मौसम के साथ सूखते हरे होते
मरते नहीं
शायद जड़ें बहुत गहरी हैं.
मिट्टी फाड़ बाहर निकल आयेंगे विचार
लड़ाई, दलीलों और भावनाओं के बीच
विचार
घास जैसे.
यह बहुत अच्छा है।

36solutions ने कहा…

शब्द आंखो से मानस के अतल गहराईयो मे खोकर अनेको अर्थो मे अपने से लग रहे है, इन भावो, बिम्बो मे मै हुँ भैया. मै एक मानव.

बहुत बहुत आभार.

शरद कोकास ने कहा…

इस एक कविता में अनेक कवितायें हैं । कोशिश करो कि एक विचार पर विस्तार से लिख सको इससे शिल्प का सौन्दर्य और बढ़ेगा ।

Kusum Thakur ने कहा…

आपको और आपके परिवार को होली की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !!

सृजनगाथा ने कहा…

आपका ब्लॉग देखा । अभिव्यक्ति की कला, भाषा, विषयवस्तु का चयन देखकर प्रसन्नता हुई । संपूर्ण ब्लॉग साहित्यिक बन पड़ा है । जारी रहे यह । बधाई ।

आपसे गुज़ारिश है बस्स यही, चूँकि आप गंभीर लेखनकर्म क्षेत्र से भी है, हमारे पिछले 4 वर्ष से संचालित और बहुचर्चित पोर्टल में भी आप कुछ विशेष लिख सकते हैं । हम आपका हार्दिक स्वागत करेंगे ।

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हम आपकी हर गतिविधियों को प्रकाशित करना चाहेगें साथ ही समीक्षा एवं साहित्य, संस्कृति, भाषा अभिकेंद्रित आलेख...

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उत्‍तमराव क्षीरसागर ने कहा…

दृढ़ इच्‍छाशक्‍ति‍....बीज बोती हुई कवि‍ता...अचानक यहॉं आना हुआ..बहुत अच्‍छा लगा्...नमस्‍कार !

http://uttam-bgt.blogspot.com