शनिवार, 26 दिसंबर 2009

कविता टुकड़ों में - 2


    कविता टुकड़ों में 2

1.      आस्था विवेक और सफलता
      हर लाश की छाती पर मौजूद है
       और पीठ पर
      बदनुमा धब्बे हैं
    मूर्खता कायरता और नीचता के
    प्रतीक सी है हर लाश
    आशंका और आकांक्षा की.



2.  निराशा की काली कोठरी में
    एक छोटे से रोशनदान जैसी
    आकांक्षा
    और
    हर सुबह सूरज उगने के पहले
    उसके बंद हो जाने की
    आशंका.

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

निराशा की काली कोठरी में
एक छोटे से रोशनदान जैसी
आकांक्षा
और
हर सुबह सूरज उगने के पहले
उसके बंद हो जाने की
आशंका.


-सॉलिड रचना!!

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात , उम्दा लगी आपकी कविता ।

निर्मला कपिला ने कहा…

निराशा की काली कोठरी में
एक छोटे से रोशनदान जैसी
आकांक्षा
और
हर सुबह सूरज उगने के पहले
उसके बंद हो जाने की
आशंका.
सुन्दर सही अभिव्यक्ति है धन्यवाद्

हास्यफुहार ने कहा…

Achchhi rachana ...

36solutions ने कहा…

बहुत सुन्दर भईया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

निराशा की काली कोठरी में
एक छोटे से रोशनदान जैसी
आकांक्षा
और
हर सुबह सूरज उगने के पहले
उसके बंद हो जाने की
आशंका......

आकांक्षा और आशंका के बीच के फांसले को काटना बहुत मुश्किल होता है ...... रात का लंबा सफ़र बहुत लंबा हो जाता है ....
सुंदर रचना है ...........