बुधवार, 9 दिसंबर 2009

बस्तर में........

इंद्रावती का चौड़ा पाट
उँचाई से तीली सी दिखती
मछुआरे की नाव
गूंगा आदमी आखों और अंगुलियों से,
जितना कह पाता है
बस उतनी है नांव है
बाकी अनकहा

चित्रकूट प्रपात का शोर
कोने में एक पतली धार की अलग मध्दम आवाज
बहरा आदमी सुन पाता है
बस धार जितना
बाकी अनसुना

कुटुम्बसर गुफा के भीतर, कुछ नहीं दिखता
अंधी मछलियों की तरह
स्पर्श और कल्पना गुत्थम-गुत्था है,
अंधा आदमी देखता है
बस स्पर्श जितना
बाकी अनदेखा

जीवन का 
अनकहा, अनसुना,अनदेखा समय जोड़ा तो पाया
अब तक दिन कुछ ऐसे ही बीते हैं
                                                                           - बालकृष्ण अय्यर्

16 टिप्‍पणियां:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

स्पर्श और कल्पना गुत्थम-गुत्था है,
अंधा आदमी देखता है,

वाह भैया क्या बात कह दी, गागर मे सागर भर दिया। आभार

PN Subramanian ने कहा…

बहुत सुन्दर. आपने हमारे बस्तर में बिताये दिन याद दिला दिए. इन्द्रावती के किनारे ही तो रहा करते थे,. background कलर को और हल्का कर दें. पढने में कष्ट हो रहा है.

बेनामी ने कहा…

अब तक दिन कुछ ऐसे ही बीते हैं

मेरी ही बात कह दी!?

बी एस पाबला

36solutions ने कहा…

ऐसे ही पलों पर अंतरतम में आकार लेती धुधली सी छवि कोई कविता, कहानी, कोई चित्र, किसी नाटक का महत्‍वपूर्ण दृश्‍य जब साकार होने लगता है तब ऐसी कवितायें फूट पडतीं हैं.... इस आकुलता को जीवंत रखें.

Anil Pusadkar ने कहा…

nice

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब।

shama ने कहा…

Aankhon ke aage ek tasveer kheench dee aapne!

Snehil swagat hai!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

kshama ने कहा…

Behtareen shabd shilp!

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी लगी रचना। बधाई।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

हास्यफुहार ने कहा…

अच्छी लगी रचना। स्वागत।

शरद कोकास ने कहा…

फिलहाल तो कवि होने की बधाई । बहुत सुन्दर है जो अनकहा है , जो कहा है उसके शिल्प में थोड़ा छेनी -हथौड़ा चलाने की ज़रूरत है ।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

अच्छी लगी रचना। स्वागत।

अजय कुमार ने कहा…

सुदर रचना । हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

jayanti jain ने कहा…

amazing expressions

कडुवासच ने कहा…

... बहुत खूब !!!!!!