मंगलवार, 16 अगस्त 2016

वृद्धाश्रम

बिटिया अपूर्वा Tata Instt of Social Sciences से Graduation कर रही है, उसके साथ दुर्ग के वृद्धाश्रम एक photographer के रोल में गया, वहीँ की कुछ तस्वीरें है। 
सब कुछ थमा हुआ सा था, एक बेहद प्राचीन सन्नाटा हर समय आस पास चहल कदमी करता। हर चेहरा उदास था, भावहीन एकदम भाव निरपेक्ष और उनमें ढेरों रेखाएं, वृत्त, त्रिभुज जैसे बहुत से ज्यामितीय चिन्ह थे, निःशब्द थके हुए अनसुलझे सवाल भी थे, और चेहरे की इन तमाम रेखाओं के बीच अनगिनत शब्द, छीनी हथौड़ी से बींधे गए। अमिट।
उनकी जानी पहचानी आहटें अब अनजान हो चुकी है, मगर अनजान आहटों पर भी वो पलटते है, उम्मीद से।
उनके पास जाना, बैठना, उनको सुनना इतिहास की किसी काली भयंकर गुफा में सफ़र जैसा अनुभव है।
जब वो बोलते है तो सहम सा जाता है सन्नाटा, शरीर के अंदर चरमराती साफ़ दिखती है गाठें, कोई सिसकी सन्नाटे को वापिस बुला रही होती है, और तभी नाभि से लहराता रुदन बाहर आ जाता है।
बिटिया के हाथ उनके कंधे थाम लेते है और उनके सर उसके सीने से लग जाते है, आंसू बिटिया के कपड़ों पर छोटे छोटे धब्बे से दिखते है, मुझे बाहर अंदर हर तरफ ये धब्बे बड़े और बड़े होते दीखते हैं।
वो सब बिटिया को छूते है और मुझे भी, शायद कोई जानी पहचानी पुरानी छुअन का अहसास वापिस पाने की कोशिश में।

















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