लड़ाई, दलीलें, भावनायें और विचार
समंदर के किनारे जाकर
सोचता हूं
ये अंतहीन किनारा ठीक मेरी लड़ाई की तरह है,
खीझ भरी और अंतहीन लड़ाई.
तपिश से सूखते पेड़ की फैलती सिमटती परछाई
खुद के लिये बेकार
ठीक मेरी दलीलों की तरह
लंबी, छोटी, अस्थिर
लगातार अपना असर खोती दलीलें.
उभरी हड्डियों वाली छाती के खांसने कराहने
की ही तरह होती हैं शायद
भावनायें
एक द्वंद भरी त्रासदी.
और,
विचार बस घास जैसे
मौसम के साथ सूखते हरे होते
मरते नहीं
शायद जड़ें बहुत गहरी हैं.
मिट्टी फाड़ बाहर निकल आयेंगे विचार
लड़ाई, दलीलों और भावनाओं के बीच
विचार
घास जैसे.
-बालकृष्ण अय्यर